हा... तनहा हूँ....
ना दिन का अंदाजा हैं
ना रातों का होश हैं....
एक मुद्दत से मेरे अंदर
मेरा अक्स बेहोश हैं...
ये टिक टिक करते घड़ी के काटे
कानों को छूँती ये हवाओं की गुंज...
लगता हैं जैसे earphones मे
full volume पे इन्हे सुन रहीं हूँ...
हा... तनहा हूँ...
ये mobile की screen
इसपे थीरकती ये उँगलियाँ...
ना कोई वजह हैं
ना कुछ बेवजह हैं....
एक दीवार... एक तकीया...
एक corner... एक charger...
वहीं रोज की जगह
हा... तनहा हूँ....
ये अँधेरा, ये खामोशी
ये रातों का जागना...
कुछ किस्से, कुछ यादे
ये ख्यालो का भागना....
वो कल, ये आज..
कुछ अनसूलझे राज...
वो वक्त,वो दौर...
वो दोस्त, वो सब...
ये मैं, ये कलम
ये चाय का कप...
हा... तनहा हूँ...
ये आँखे... ये लोग..
ये तनहाई का रोग...
ना कोई ठिकाना,
ना कोई रास्ता
ना कोई रिश्ता
ना किसी से वास्ता...
हा...बस... तनहा हूँ....
~ अनामिका