तुम सोच समझ के टहला करो खुले बालों से छत पे
खाँगखाँ खामोश बहती हवाएँ आवारा हो जाती हैं।
~अनामिका
खाँगखाँ खामोश बहती हवाएँ आवारा हो जाती हैं।
~अनामिका
इस blog के माध्यम से मेरी लिखी हुई कुछ हिंदी और मराठी गजलें एवं कविताएँ "अनामिका" इस तखल्लूस के साथ दुनिया के सामने लाने की एक कोशिश... - Shraddha R. Chandangir, Nagpur