Monday 31 August 2015

खामोश हवाएँ आवारा हो जाती हैं...

तुम सोच समझ के टहला करो खुले बालों से छत पे
खाँगखाँ खामोश बहती हवाएँ आवारा हो जाती हैं।
~अनामिका

Saturday 29 August 2015

हारे हुए रिश्तों की अक्सर यही हालत रह जाती हैं....

हारे हुए रिश्तों की अक्सर यही हालत रह जाती हैं
लोगों की मोहब्बत रहती नहीं पर आदत रह जाती हैं।
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तनहाई का सौदा वैसे इतना भी घाटे में नहीं चलता
बेचैनी नहीं बसती विराने में, बस राहत रह जाती हैं।
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बदलते हुए हालातों से समझौता तो हो जाता हैं पर
कोई चाहें या ना चाहें, चुपके से चाहत रह जाती हैं।
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लेन-देन के मामलों में तो यादें लौटाना नामुमकिन हैं
अपनी वहाँ तो किसी की यहाँ ये अमानत रह जाती हैं।
~ अनामिका

Thursday 27 August 2015

इबादत और मोहब्बत में फर्क....

इबादत और मोहब्बत में सिर्फ इतना ही फर्क हैं....
अक्सर लोग मोहब्बत को जहन में ही रखते हैं, जुबान तक नहीं लाते...
और इबादत सिर्फ जुबान के लिए रखते हैं, जहन में नहीं रखते।
~ अनामिका

गुनाह कल कर के थक गया हूँ मालिक....

गुनाह कर कर के थक गया हूँ मालिक,
हो सके तो थोडी रजा दे दे
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रहम-ओ-करम से तेरे शर्म आती हैं,
आखिरी रहम कर अब सजा दे दे
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रखकर तुझे जुबान पे अक्सर
मैं जहन से निकाल देता हूँ तुझे
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ऐसा मैं इक फरेबी हूँ मालिक
तू जीने कि जायज वजह दे दे।
~ अनामिका

Wednesday 26 August 2015

माना सातों सुरों पे....

माना सातों सुरों पे तेरी हुकूमत हैं ऐ सितार
सितारपर तू दिल में तभी उतरती हैं जब उँगलियों में हुनर हो।
~अनामिका

खामोश हवाएँ...

छोड़ दिया खुले बाल यूँ छत पे टहलना
खामोश बहती हवाएँ भी आवारा हो जाती हैं।
~ अनामिका

Tuesday 25 August 2015

माना ये मुकद्दर हैं....

माना ये मुकद्दर हैं, काला कौआ सफेद नहीं रहता
भीड़ के देखो काले रंग से, मिट जाते हो भेद नहीं रहता
चलो मैं पीतल हि सही, सोने जैसी किस्मत तो नहीं
पर खुश हूँ कि आजाद हूँ, कमसे कम कैद नहीं रहता।
~ अनामिका

Saturday 22 August 2015

वो महफिलों का वजीर-ए-आलम....

वो महफिलों का वजीर-ए-आलम, सिपाही ढूँढता रहा
मैं मुफलिस बिखरे मुस्तकबील कि गवाही ढूँढता रहा।
वो आया, मुस्कूराया, जुबान खोली और चल दिया
और यहाँ मैं था, जो कलम के लिए स्याही ढूँढता रहा।
~ अनामिका

Thursday 20 August 2015

अमन से रहना सिखों....

अमन से रहना सिखों, हर वक्त बवाल नहीं चलते
इबादतों से भर लो झोली, वहाँ कंगाल नहीं चलते
मनमानी कि आदत हैं तो बदल जाओ अभी वक्त हैं
जब सामना होता हैं खुदा से,अपने सवाल नहीं चलते।
~ अनामिका

Sunday 16 August 2015

अपनी खुद्दारी पे पलता है गम..

अपनी खुद्दारी पे पलता हैं गम इसका सहारा नहीं होता
सीने में मिल्कीयत होती हैं इसकी, ये बंजारा नहीं होता।
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तुम ढील जैसी देते जाओ वैसी ही पतंग उडती हैं
खाँमखाँ ही कोई धागा यहाँ आवारा नहीं होता।
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पसीने के श्रींगार से सजी माँ की खूबसूरती देखो कभी
इससे सुंदर दुनिया में कोई नजारा नहीं होता।
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कष्ती पानी में छोड़ो गे तो बह ही जाएगी धीरे धीरे
जो रोक ले उसे इतना वफादार किनारा नहीं होता।
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वो अनशन में हो शामिल या फिर शामिल किसी मोर्चे में
अगर वो संसद का कोई बंदा हैं, तो बेचारा नहीं होता।
~ अनामिका

Friday 14 August 2015

इतिहास भी सलामी देता है....

इतिहास भी सलामी देता हैं, कुछ ऐसी कहानी दिखाएँगे
तुम हिन्दुस्तान आओ, तुम्हे असली कुर्बानी दिखाएँगे।
कभी बुरी नजर से ना देखना मेरी वतन की और यारों
वर्ना हिन्दुस्तान हि नहीं, तुम्हे हिन्दुस्तानी क्या हैं दिखाएँगे।
~ अनामिका

Thursday 13 August 2015

भ्रम

मैंने ही सब जीता हैं, बस इसी वहम में रहता हैं
करनी तेरी होती हैं मालिक, इंसान भ्रम में रहता हैं।
~ अनामिका

तजुर्बा

यूँ ही नहीं छिपती शरारतें चेहरों से
तजुर्बा आड़े आता हैं पर्दा बनकर।
~ अनामिका

ईल्जाम

ईल्जाम ना दो तूफानों  को जो छत खोखली कर गए
कुछ कसूर तो अपना भी था, घर ही अपने कच्चे थे।
~ अनामिका

Saturday 8 August 2015

अल्लादिन का चिराग

जवानी कि रोशनाई भी फिकी पड जाती हैं उस वक्त
जब बचपन वाला अल्लादिन का चिराग याद आता हैं।
~ अनामिका

जमाने कि हँसी को....

जमाने कि हँसी को गमों का खुराक बना दिया
इसी तरह अपने गुनाहों को मैंने पाक बना दिया
जद्दोजहद में उलझ गए थे कई जरूरी किस्से
उनसे पिछा छुड़ाने के वास्ते उन्हें मजाक बना दिया।
~ अनामिका

Thursday 6 August 2015

जबसे देखा नहीं उसने....

जब से देखा नहीं उसने ऐसा मेरा रंग लगने लगा हैं
कि लगता हैं जैसे सोने पर भी जंग लगने लगा हैं।
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बचत आजकल के बच्चे कुछ इस तरह करने लगे हैं
जनाजे पर बाप का कफन भी अब तंग लगने लगा हैं।
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जिंदगी कि चुनौतीयों को जबसे रब कि मर्जी समझा हैं
मेरा जीना भी वो बेखौफ उडता सा पतंग लगने लगा हैं।
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वाकिफ हो गई हैं जुबान भी तरह तरह के जायको से
जबसे उसका बदला बदला सा ढंग लगने लगा हैं।
~ अनामिका

Wednesday 5 August 2015

भाई

मेरे जख्म उसने देखें, तब दवाई कि याद आईं
उसकी तरक्की मैंने देखी, तब मिठाई कि याद आईं
सुबह लड़ाई करके जिसे दो बातें सुनाई थी
शाम को खामोशी सुनी, तो भाई की याद आईं
~ अनामिका

Tuesday 4 August 2015

लम्हे

जो गया जिंदगी से, उसका गम हैं पर गिला नहीं... जो लम्हे उसने दिए... मेरी हैसियत से बढ़कर दिए...
~ अनामिका

तूफान का अंदाजा होकर भी....

तूफान का अंदाजा होकर भी जो जीद पे अडे रहेंगे
पंछी पिंजरे से जो निकलेंगे तो जमीन पे पड़े रहेंगे।

वक्त बचाने के लिए जो रेल कि पटरी लांघ के भागते हैं
बिल्ली जो रास्ता काँटे तो देर तक वहीं खड़े रहेंगे।

विरासत के कारोबार में जो गल्ले पे बैठे रहते है
बाजार में अठन्नि चवन्नि कि भी, गिनती में बिगडे रहेंगे।

अधूरी मोहब्बत आंशिको को इस तरह असर करती हैं
सरेआम इश्क छिपता नहीं तो नफरतों में जकड़े रहेंगे।
~ अनामिका

Monday 3 August 2015

जीने में जान तो हो।

जिंदगी किसी मोड़ पे थोड़ी आसान तो हो
चलो आसान ना सही जीने में जान तो हो।

खुशियाँ दस्तक दिए दर पे खड़ी रहती हैं
उन्हें मनाने का पास में कोई प्लान तो हो।

मुट्ठी भर पैसे नहीं चुटकी भर इज्जत ही सही
दुनिया वालों में अपनी भी ऐसी शान तो हो।

निशाने पर मंजिल हैं और मेहनत के हाथों में तीर
पर किस्मत से जो मिले ऐसी कमान तो हो।
~ अनामिका

Saturday 1 August 2015

तस्विर

जो बाँध सके तेरी यादों को वो जंजीर नहीं देखी
मेरी रूह से भी छीनले तुझे वो तकदिर नहीं देखी
कहीं मेरी ही नजर ना लग जाएँ इसी खौफ से  ए सनम
इक अरसा हो गया मैंने तेरी तस्वीर नहीं देखी।
~ अनामिका

माँ

आग से कहासूनी हुई पर हवा को नहीं सुनाई
बिमारी से लतीफे बाँटी, दवा को नहीं सुनाई
कहीं पढ़ न ले वो मेरे सिने का दर्द इसीलिए
जमाने भर को सुनाई गजल, माँ को नहीं सुनाई।
~ अनामिका

तस्वीर

जो बाँध सके तेरी यादों को वो जंजीर नहीं देखी
मेरी रूह से भी छीनले तुझे वो तकदिर नहीं देखी
कहीं मेरी ही नजर ना लग जाएँ इसी खौफ से यारो
इक अरसा हो गया मैंने उसकी तस्वीर नहीं देखी।
~ अनामिका