Friday 27 November 2015

खुद्दारी को मेरे वो फिजूल कहते हैं...

खुद्दारी को मेरे वो फिजूल कहते हैं
कोई बताए उन्हें, इसे उसूल कहते हैं।
.
मोहब्बत के जोखिम से जिंदगी को जाना हैं
और दुनिया वाले हैं, की इसे भूल कहते हैं।
.
लाखों बातें करके भी दिल जुड़ नहीं पाते
और रिश्ता जुडते वक्त महज कबूल कहते हैं।

Wednesday 18 November 2015

ऐसा नहीं की आरजुएँ किसी की कत्ल नहीं होती....

ऐसा नहीं की आरजुएँ किसी की कत्ल नहीं होती
बात ये हैं की इतनी सच्ची कोई शक्ल नहीं होती।
.
यूँ तो चेहरों से छलकती हैं तमाम खुशियाँ लोगों के
पर चैन और सुकून की किसी से, नकल नहीं होती।
.
हुक्म हो मौसम का, तो झुकना पड़ता हैं मजबूरी में
जानबूझकर कभी बेवफा, कोई फसल नहीं होती।
.
वाह वाह तो मिल जाती हैं दिल से निकले शेरों पे
पर कहते हैं, की बिना बहर के गजल नहीं होती।
~ अनामिका

Sunday 8 November 2015

उन्हें भुलके उन पर इक एहसान कर आएं हैं....

उन्हें भुलके उन पर इक एहसान कर आएं हैं
जरा देखिए हम मुनाफे में नुकसान कर आएं हैं।
.
बड़ी नाजो से संभाले थे इक अरसे से जो गुलाब
आज अपने ही गुलिस्ताँ को हम शमशान कर आएं हैं।
.
अपनी ही मिल्कीयत में वो था जो दिल अब तक
उसी दहलीज पे खुद को इक मेहमान कर आएं हैं
.
इस खामोशी से निभाया फर्ज सच्ची मोहब्बत का
की लगता हैं अब खुद को हम बेजुबान कर आएं हैं।
~ अनामिका

Thursday 5 November 2015

जो शिकवे थे बरसों से....

जो शिकवे थे बरसों से वो पल में खत्म हो गए
ये मेहरबानी थी हमपे, या नए सितम हो गए।
.
न हमसे कोई नाराजगी, और मोहब्बत भी हमीसे
हैरत हैं के हमको भी ये कैसे कैसे भरम हो गए।
.
आखिर मोहब्बत से आजादी? वाह क्या सजा हैं
चलो शुक्र हैं ऐ मालिक, तेरे हमपे करम हो गए।
~ अनामिका

Wednesday 4 November 2015

झरने

बिछडते वक्त उसकी आँखो में क्या देखा था
अब रास्तो में मेरे, कई झरने आते रहते हैं।