Tuesday 27 December 2016

वक्त करोड़ को कौडी भी करता हैं

अब कि बार निशाने सादे जाएँगे
जख्म जितने थे सब कुरेदे जाएँगे।
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उँगली उठाने की आदत हैं जींसे
इलजाम उसपर भी लादे जाएँगे।
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वक्त करोड़ को कौडी भी करता हैं
बेचने वाले खुद ही खरीदे जाएँगे।
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मासुमियत को डर समझने वाले
खाक में तेरे, सारे इरादे जाएँगे।
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पिंजरा बेचकर, गुफा होगी लेकिन
हाथ से निकल सारे परिंदे जाएँगे।
~ अनामिका

Saturday 17 December 2016

बाद में पचताकर भी बहुत मोल पड़ता हैं!

कंबख्त इंसानी खून, जब भी उबल पड़ता हैं
जो ना कहना हो, बंदा वो भी बोल पडता हैं।
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यूँ तो निकल ही जाती हैं, जुबाँ से ऐसी बाते
बाद में पचताकर भी, बहुत मोल पड़ता हैं।
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मरम्मत भी रिश्तों कि जरूरी हो जाती हैं जैसे
दिलों के नाके पर भी, खासा टोल पड़ता हैं।
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कहते हैं कि वक्त, हर मर्ज कि दवा हैं लेकिन
वक्त गुजरते गुजरते भी, बहुत मोल पड़ता हैं।
~अनामिका