Thursday 18 May 2017

लोग तो सादगी से तबाह करते हैं।

बड़े ही सलीक़े से गुमराह करते हैं
कई बार जो हमें, आगाह करते हैं।
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ख़ैरियत पूँछकर के, दिन गीनते हैं
जताते हैं अपनी, परवाह करते हैं।
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होते नहीं हैं वैसे जैसे नजर आते हैं
लोग तो सादगी से तबाह करते हैं।
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बैचैनी भी अक़्सर, वही पनपती हैं
जो हर तरफ अपनी निगाह करते हैं।
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निकल आते हैं वो लोग भी काफीर
जो सजदा शाम-ओ-सुबह करते हैं।
~ श्रद्धा

Friday 5 May 2017

मनमानी

ताज्जुब हैं कि वो शख़्स मेरा भी नहीं
मेरे बिना जीना, जिसे गवारा भी नहीं।
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हक़ जताने वाला, उम्मीद पर भी उतरे
जैसे खेल हो उसी का, हमारा भी नहीं।
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रिश्ता हो अगर, तो जिम्मेदारी भी हो
महबूब का मतलब, आवारा भी नहीं।
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टूटकर यूँ ख़्वाहिशें, मुकम्मल कैसे हो
आसमान का मै कोई सितारा भी नहीं।
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बेबसी मोहब्बत पे हावी क्यों होती हैं?
ऐसा नहीं कि कोई और चारा भी नहीं।
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आशिक़ी अब इश्क़ में, तब्दील तो हो
ताउम्र तो ऐसे अपना, गुजारा भी नहीं।
~ श्रद्धा (30 January)

Wednesday 3 May 2017

Fashion

Fashion कि दुनिया भी मियाँ गजब कि दुनिया हैं पेट... भरने के लिए हि लोगों को अक्सर भुखा रहना पड़ता हैं!
~ श्रद्धा