Wednesday 27 December 2017

ये खेल तो वकील की दलील का हैं!!

जो बात शोलों  की आग में होती हैं
वो हि  चिंगारी में, चराग़ मे होती हैं।
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कमाल यहाँ पर, रागिनी भी करती हैं
धुन क्या फ़क़त एक राग़ में होती हैं?
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ये खेल तो वकील की दलील का हैं
भले ही सच्चाई सुराग़ मे होती हैं।
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सफेद रंग से तो अंजाम होता हैं
आग़ाज-ए-ज़िन्दगी दाग़ में होती हैं।
~ श्रद्धा

Saturday 23 December 2017

Mohabbat

माना कि  तेरे ख़यालों  में, ग़ुम नहीं हूँ  मैं
लेकिन तेरी मुहब्बत से, महरूम नहीं हूँ मैं।

मैं कहानी हूँ  मुक़म्मल, वजूद मिरा  तन्हा
तराने  को  ज़रूरी, वो  तरन्नुम  नहीं  हूँ मैं।

पाने खोने  का ये ख़ेल, रास हि नहीं आया
हिसाब करें उल्फत मे, वो हुजूम  नहीं हूँ मैं।

लाहासिल हूँ मैं मगर, तुम्हे कामिल कर दूंगा
आखिरकार  मैं मैं हूँ  जाना, तुम  नहीं हूँ मैं।
~ shraddha

Saturday 2 December 2017

Gazal

ठहरा  हुआ हूँ, इक ज़माने  से मैं
हटता क्यों नहीं तेरे निशाने से मैं।

सातों सूर मिल के, धुन छेड़ देते हैं
तिलमिलाता  हूँ इक,  तराने से मैं।

रूठ कर टूटने का शौक़ अब ख़त्म
मान  जाता  हूँ बस, मनाने  से  मैं।

खुद को खो  देने का, डर नहीं रहा
फायदे मे हूँ अब, तुझे गवाने से  मैं।
~ Shraddha