ख़ुद हि को उससे, जुदा किया था मैंने
इस तरह उसको, संजीदा किया था मैंने।
मशगुल था आशिक़ी मे आवारगी कि तरह
जिससे 'मुहब्बत ' का इरादा किया था मैने।
दिवानेपन की, और इंतहा क्या होगी
पूछा हि नही मुझसे वो वादा किया था मैने।
ये भी सबब था उससे, मुँह मोड़ लेने का
इश्क़ भी उसी से, ज़ियादा किया था मैंने।
नतीजा आख़िर कुफ़्र का, हिज्र हि होना था
मिट्टी के इंसाँ को जो, ख़ुदा किया था मैने!
~ Shraddha R. Chandangir
इस तरह उसको, संजीदा किया था मैंने।
मशगुल था आशिक़ी मे आवारगी कि तरह
जिससे 'मुहब्बत ' का इरादा किया था मैने।
दिवानेपन की, और इंतहा क्या होगी
पूछा हि नही मुझसे वो वादा किया था मैने।
ये भी सबब था उससे, मुँह मोड़ लेने का
इश्क़ भी उसी से, ज़ियादा किया था मैंने।
नतीजा आख़िर कुफ़्र का, हिज्र हि होना था
मिट्टी के इंसाँ को जो, ख़ुदा किया था मैने!
~ Shraddha R. Chandangir