मेरी हि "सोच" मुझसे, ये अक्सर सवाल करती हैं
खुद मुझसे जो कराती हैं, उसीपे मलाल करती हैं।
.
अपनी अना के वास्ते, दुखाया सारे अपनों को ही
वाह रे मेरी खुद्दारी, यार तू भी कमाल करती हैं।
.
उसूलों पे मुझे अपने, वैसे फक्र भी हैं पर फिर भी
न जाने कैसी शर्मिंदगी से, जीना मुहाल करती हैं।
.
सोच भी मेरी अक्सर, सोच में पड़ जाती हैं सोचके
कि कभी कभी ये खुद्दारी, सच में बवाल करती हैं।
~ श्रद्धा
.
अना- खुद्दारी
मुहाल- मुश्किल