Sunday 22 October 2017

ज़रासा मैं फ़िसला था, तो हुआ तजुर्बा ऐसा...

रात तो मेरी होगी, मग़र ढल तुम  जाओगे
कभी सोचा न था इतनें बदल तुम जाओगे।

ज़रासा मैं फ़िसला था, तो हुआ तजुर्बा ऐसा
क्या ख़बर थी मुझको, संभल  तुम जाओगे।

ज़िन्दगी उतर आएगी, लतीफ़े सुनाने तुमको
कैसी कैसी हँसी को भी, निगल तुम जाओगे।

ख़ुश्क ज़िन्दगी यार, आँखो को हरा करती है
पानी मे तरबतर हो के भी जल तुम जाओगे।
~ Shraddha