Tuesday 17 May 2016

जद्दोजहद मेरे दिल की कुछ यूँ हल हो जाएँ

जद्दोजहद मेरे दिल की, कुछ यूँ हल हो जाएँ
जो बसा हैं इस दिल मे उसी से पहल हो जाएँ।
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जो दे अगर दस्तक मेरे दिल की दहलीज पे वो
इस फकीर की ये कुटीया भी, महल हो जाएँ।
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तसव्वूर में भी हो जाएँ, जो दिदार अगर उसका
ये तमाम नजारे दुनिया के, फिर ओझल हो जाएँ।
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इस खौफ और कश्मकश में गुजर रहीं हैं जिंदगी
ये पल ही ना कहीं, गुजरा हुआ कल हो जाएँ।
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मकसद सा लगने लगा हैं जीने का वो मुझ को
जो उसे पा लू, तो ये जिंदगी भी सफल हो जाएँ।
~ अनामिका