Sunday 28 June 2015

जुदाई

राह देखते देखते तेरी बहुत देर हो गई
कल तलक मैं तेरी थी आज गैर हो गई।
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न पुंछा तुने कुछ भी, न कहां मैंने कुछ भी
इस बिच इक मोहब्बत की शाम-ओ-सहर हो गई

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अनकहे कुछ जज्बात भीतर ही दफन हो गए
जुदाई की वो घडींयाँ पल में कहर हो गई
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मर मर के गुजरती हैं अब तेरे बिना ये जिंदगी
तेरे नाम जो साँसे थी, आज जहर हो गई।
~ अनामिका