Monday 29 June 2015

बेबसी

बिन देखें मुझको वो रहता क्यूँ नहीं?
ताज्जुब हैं फिर भी कुछ कहता क्यूँ नहीं?
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तडप मेरी चाहत की दिखती हैं उन आँखो में
अश्कों का कोई कतरा फिर बहता क्यूँ नहीं?
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ऐतबार तो हैं मुझे भी, पर गुरूर भी तो हैं
फिर दूरी उससे ये दिल सहता क्यूँ नहीं?
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चलो छोडो मैं ही, पहल कर दूँ सोचता हूँ
फिर डर के मारे ये दिल भी कुछ कहता क्यूँ नहीं?
~अनामिका