Thursday 27 July 2017

तख़्त-ओ-ताज पे जो बैठा हैं चीख कर बैठा हैं।

बड़े ही ऊँचे ओहदे पे, जो टिक कर बैठा हैं
तुम आज भी महँगे हो, वो बिक कर बैठा हैं।
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उम्र तुम्हारी कच्ची हैं सबको सिखाने में लगे हो
वो ज़िन्दगी के दावपेंच को, सीख कर बैठा हैं।
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जोख़िम उठाने के डर से, ख़ुद मे छुपते रहे हो?
बुलंदियों पे जो बैठा हैं सबको दिख कर बैठा हैं।
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ख़ामोशी से रहोगे, तो यहाँ मस्ख़रे बन जाओगे
तख़्त-ओ-ताज पे जो बैठा हैं चीख कर बैठा हैं।
~ श्रद्धा