Thursday 6 July 2017

आजकल तो कड़ी धूप को लिए, दिसम्बर भी आता हैं।

दिल मे ख़स्ता बंजरपन, आँखों में समंदर भी आता हैं
आजकल तो कड़ी धूप को लिए, दिसम्बर भी आता हैं।
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यूँ तो इस दिल को यक़ीन हैं की वो भूल चुका हैं मुझको
ग़ौरतलब हैं की अक्सर शामों में, राँग नंबर भी आता हैं।
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तहज़ीब बरक़रार रखी हैं हमने अपने पुर्खों की आज भी
पेपर बिल लाने वाला दो पल, घर के अंदर भी आता हैं।
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ये नुक़ीले लफ्ज मेरी सोच से भी, ज्यादा महँगे पड़ रहें हैं
बात मानो तो बाज़ार में सस्ता वाला, ख़ंजर भी आता हैं।
~ श्रद्धा