Friday 2 October 2015

वहाँ दिये तो जलते हैं मगर रोशनाई नहीं होती...

वहाँ दिये तो जल ते हैं मगर रोशनाई नहीं होती
तवायफों के मुकद्दर में कभी शहनाई नहीं होती।
.
हुक्म था पंखों का अब दुनियादारी निभाई जाएँ
वर्ना परिंदे की पेड़ से कभी बेवफाई नहीं होती।
.
जज्बातों से बखूबी खेला, लफ्जों को मापा तोला नहीं
वर्ना कभी की महफिलों में यूँ रुसवाई नहीं होती।।
.
तमाम मुल्क की आवाम भी अब दंगो पर उतर आती हैं
फकत खिताब मिलने से यहाँ बादशाही नहीं होती।
~ अनामिका