Monday 21 September 2015

नासमझ वो कहता हैं...

नासमझ वो कहता हैं मैं रिश्ता मिटाने को आता हूँ
मैं तो झगड़-झगड़ के मोहब्बत जताने को आता हूँ।
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फासलो से कहाँ मिटती हैं बेचैनियाँ ये दिलों की
मैं तो यूँ टकरा के मोहब्बत निभाने को आता हूँ।
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हँसने वाले कहाँ कभी सच्ची मोहब्बत करते हैं
तुझे मैं जानता हूँ तभी तो रूलाने को आता हूँ।
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खामोशी भी कर देती हैं ख्वाहिशें दिल की बयान
मैं भी सब समझता हूँ, ये समझाने को आता हूँ।
~ अनामिका