Saturday 22 August 2015

वो महफिलों का वजीर-ए-आलम....

वो महफिलों का वजीर-ए-आलम, सिपाही ढूँढता रहा
मैं मुफलिस बिखरे मुस्तकबील कि गवाही ढूँढता रहा।
वो आया, मुस्कूराया, जुबान खोली और चल दिया
और यहाँ मैं था, जो कलम के लिए स्याही ढूँढता रहा।
~ अनामिका