Monday 13 July 2015

नजरिया

कोंसना छोड़ो मंजिलों को तुम जरिया बदल के देखो
नजर धोखा देती हैं अक्सर तुम नजरिया बदल के देखो।
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अपने मन से बहना ही अगर बेहतर लगता हैं खुद को
तो अपनी मर्जी की राहे चूनो और दरिया बदल के देखों।
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मोड़ आने पर बंद हो जाती हैं जिंदगी की गाड़ी भी
पर रुको मत सफर में कभी तुम पहिया बदल के देखो।
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बेरंग लगने लग जाते हैं उस रंगीन गजल के रंग भी तब
जब लफ्जों से यूँ ही खेलते हुए तुम काफिया बदल के देखो।

~ अनामिका