Wednesday 22 July 2015

तूफान

जिंदगी में उसने दस्तक दि थी इक मेहमान बनकर
और मैं नासमझ उसे चाहता रहा, नादान बनकर।
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इस दिल को बहुत जलाया वैसे तो उसने यारो
और दुनिया में मैं महकता रहा इक लोबान बनकर।
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मिल्कीयत सोंपी जिसे, बड़ी बेरहमी से वो छोड़ गया
और दिल मेरा रह गया किराए का मकान बनकर।
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पहली बरखा जैसी उसने आहिस्ता आहट तो दि
पर मुझपर से वो गुजर गया इक तूफान बनकर।
~ अनामिका