Thursday 30 July 2015

गुरूपौर्णिमा

ईश्वर हो या ब्रम्हविधाता
या हो जग के चारों धाम
सत्य अनोखा एक ये जाना
श्रेष्ठ हैं सबमें गुरू का नाम
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काम क्रोध पर कठिन नियंत्रण
और कठिन हैं प्रपंच माया
मिथ्या के इस भवबंधन में
धन्य वो जिसने गुरु को पाया।
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गुरुभक्ति आसान ना कोई
एकलव्य सा दूजा ना होई
काट अंगुठा गुरुआज्ञा पर
गुरुचरणों में भेट चढ़ाई।
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मन की पीड़ा मन की शांति
होत अकेला पल पल रोएँ
हैं ये महिमा गुरू नाम का
सुख दुख में ना विचलित होएँ।
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मृत्युकाल जब सामने तय हो
हरी हो मन में फिर क्या भय हो
नरसिंह्वा बन गुरु जब आएँ
जग भर में प्रह्लाद की जय हो।
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मात पिता या सगे पराएँ
एक समय सब छोड़ के जाएँ
गुरू सखा और गुरू हि साथी
मोक्षप्राप्ति का मार्ग दिखाएँ।
~ अनामिका